लगन, पूर्ण मनोयोग से किया गया परिश्रम तथा विषम परिस्थितियों में भी संयम बनाए रखना निश्चय ही भीड़ से अलग पहचान दिलाता है। अपने कर्तव्यों के प्रति निरंतर मनन, मंथन तथा चिंतन बुलंदियों की नई परिभाषा गढ़ने का मूल मंत्र है। कहा जाता है कि व्यक्ति के व्यक्तित्व और कृतित्व की व्याख्या उसके सामाजिक सहभागिता और किए गए योगदान से तय होती हैl सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश के होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. भास्कर शर्मा ऐसे ही किरदार का नाम है जिसने कड़ी मशक्कत, निष्ठा और त्याग के जरिए खुद को अध्ययन योग्य बनाया है। बहुआयामी प्रतिभा के धनी डॉ. भास्कर शर्मा का जन्म गौतम बुद्ध की पावन नगरी सिद्धार्थनगर के इटवा तहसील के गांव बभनी माफी में शिक्षक पिता व गृहणी माता - पिता के पुत्र का लालन-पालन तथा शिक्षा गांव में हुई। प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करते हुए डॉ. शर्मा विभाग द्वारा आयोजित बाल क्रीड़ा प्रतियोगिता में बढ़ - चढ़कर हिस्सा लेते रहे। कई प्रतियोगिताओं में इन्होंने मंडल स्तर तक अपना झंडा गाड़ा।
निबंध प्रतियोगिता में इनकी प्रतिभागिता को ही अध्यापक जीत समझते थे क्योंकि इनके गुरुओं को इनकी अंतर्निहित प्रतिभा पर विश्वास हो चुका था। कहावत "पूत के पांव पालने में हीं दिखाई देते है, पूरी तरह चरितार्थ होने लगा था। इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद तराई के ऑक्सफोर्ड के रूप में विख्यात महारानी लाल कुंवर स्नाकोत्तर महाविद्यालय बलरामपुर से विज्ञान स्नातक की डिग्री प्राप्त की उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए डॉ. भास्कर शर्मा खुद को भीड़ से दो कदम आगे रखने में सफल होते थे। स्नातक पूर्ण करके भास्कर शर्मा ने अपनी मेहनत का लोहा मनवाते हुए बीएचएमएस में प्रवेश लिया। बीएचएमएस के बाद डॉ. भास्कर शर्मा ने एमडी होम्योपैथी की डिग्री ग्रहण की। एमडी होम्योपैथी की डिग्री हासिल करने के बाद भी होम्योपैथी के गहन अध्ययन की इनकी ललक पूर्ण नहीं हुई और इन्होंने पीएचडी होम्योपैथी में भी प्रवेश लिया जो इनके वैश्विक पहचान का आधार बना।
आज डॉ. भास्कर शर्मा देश के चुनिंदे होम्योपैथिक चिकित्सकों में शुमार है जिनके पास पीएचडी होम्योपैथी की डिग्री है। अध्ययन पूर्ण करने के बाद डॉ. भास्कर शर्मा ने अपनी चिकित्सा सेवा से निरोगी समाज के निर्माण की संकल्पना को साकार करना शुरू किया। होम्योपैथी के प्रचार-प्रसार व विकास में महती योगदान का प्रतिफल है कि आज डॉ. भास्कर शर्मा के नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के 13 प्रमाण पत्र के साथ ही 400 से अधिक अन्य विश्व रिकार्ड दर्ज है और 900 से अधिक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड वे प्राप्त कर चुके हैं। इतना हीं नहीं, डॉ. भास्कर शर्मा ने अपनी काबिलियत से कामयाबी की जिस बुलंदी को तय किया है वह निश्चित ही युवाओं के लिए उदाहरणीय है। वर्तमान में होम्योपैथी की वैश्विक स्तर पर शायद ही कोई ऐसी संस्था है जो डॉ. भास्कर शर्मा को अपनी समिति में शामिल करने के लिए ना प्रयासरत हो। चिकित्सा ही नहीं, अपितु साहित्य भी डॉ. भास्कर शर्मा के कार्यों से उपकृत हो रहा है। साहित्य के क्षेत्र में भी डॉ. भास्कर शर्मा ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में भी इनका अतुलनीय योगदान रहा है। डॉ. भास्कर शर्मा ने अपनी साहित्यिक यात्रा में डेढ़ सौ से अधिक पुस्तकों की सृजना की है जिसमें सैकड़ों पुस्तकें होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की हैं जिनका लेखन हिंदी में किया गया है। होम्योपैथी चिकित्सा की पुस्तकों का हिंदी में लेखन इसकी सर्व सुलभता में अहम भूमिका निभा रहा है। डॉ. भास्कर शर्मा द्वारा होम्योपैथी द्वारा पथरी का इलाज, जोड़ों का दर्द, बवासीर, चर्म रोग, बाल का झड़ना, डायबिटीज, पुरुषों में नपुंसकता, स्त्री में मासिक धर्म की अनियमितताएं, ल्यूकोरिया, बच्चेदानी की गांठ, पेट में गैस बनना, आदि बीमारियों का सफल इलाज होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति द्वारा किया जा रहा है।